प्रज्ञा की प्रतिष्ठा
[Dignity Of Intellect]
“यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम्।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः
किं करिष्यति॥“
[Yasya Naasti Swyam Pragya Shaastram Tasya Karoti Kima!
Lochanabhyaam Viheenasya Darpanah Kima Karishyati!!]
उपरोक्त
श्लोक संस्कृत साहित्य में वर्णित "सुभाषित श्लोको" से है।
[The aforesaid Shaloka is from “Subhashit
Shloka” described in Sanskrit Literature]
हिन्दी
अनुवाद:- जिस व्यक्ति में स्वयं की बुद्धि नही है उसका शास्त्र क्या
करेंगे यथा एक नेत्रहीन व्यक्ति के लिये दर्पण क्या करेगा।
[English Translation: One who has no
self intellect what the Shaastra (Vedic) means for him same as what the Mirror
means for a blind]
भावार्थ:
- जैसे एक नेत्रहीन के लिये दर्पण व्यर्थ है ठीक उसी प्रकार शास्त्रों का अध्यन
करना किसी भी व्यक्ति के लिये व्यर्थ है जिसमें शास्त्रों के गूढ अर्थो को समझने
की विशेष बुद्धि "प्रज्ञा" नही है।
[Gist: - Just like the Mirror finds
no utility for a Blind same as reading the Shaastra (Vedic) proves useless for
a person having no special intellect known as “Pragya” to understand them]
व्याख्या:- ज्योतिष ज्ञान को धारण करने में
तत्त्पर हे विद्यार्थीओं एवं शोधकर्त्ताओं !
[Explanation: - O
Students & Researchers! Intending to grasp the Knowledge of Vedic Jyotish]
(१) यह ज्योतिष एक शास्त्र है जो छह
शास्त्रों के अन्तर्गत आता है। यह एक अच्छी बात है कि आप इस ज्योतिष शास्त्र का
अध्यन पूर्ण निष्ठा से कर रहें हैं और इस संदर्भ में विभिन्न विद्वानो की टीकाओं
एवं टिप्पणियों का भी भली भांती अध्यन कर रहे हो पर जब तक आप शास्त्र के गूढ वाक्यों
को समझने की विशेष बुद्धि "प्रज्ञा" का विस्तार नही कर लेते तब तक आपका
यह अध्यन पूर्णता प्राप्त नही कर सकता। आप सब के हितार्थ मैं कुछ सरल सूत्रों का
वर्णन कर रहा हूँ जिनका अनुकरण कर आप अपने में समाहित
बुद्धि "प्रज्ञा" का विस्तार कर सकते हैं जो अधोलिखित है:
[(1) This Jyotish is a Shaastra
which is one of the Six Vedic Shaastra. This is fair enough that you are
studying this Jyotish Shaastra with full devotion and in this context you are
also studying the commentaries of various experts in true sense but unless you expand the special intellect “Pragya”
necessary to understand the inner meanings of subtle statements of Vedic
Shaastra your study will not complete. For the benefits of all of you I am describing
several simple clues described hereunder following them you will be able to
expand the intellect “Pragya” living inside you:]
(१.१) किसी भी ज्योतिष पद का जो भी अर्थ आपकी
बुद्धि में आता हो उसी पर विशेष ध्यान देवे यथा फलित की व्याख्या करते समय यदि कोई
विद्वान भांश शब्द का अर्थ नवांश करता है तो इस पर भी विचार करें कि मुनि पारशर ने
भांश का अर्थ एक राशि का २७ वा भाग मान कर भांशचक्र का निर्माण किया है तो यदि ज्योतिष
पद में वर्णित भांश को मुनि पारशरोक्त भांश मान कर शोध किया जाय तो आप ठीक मार्ग
का अनुगमन कर रहे है। इस तरह आप संस्कृत के शब्दों के अनेकानेक अर्थों को प्रयोग
रूप मे ला सकतें हैं क्योंकि संस्कृत के एक शब्द के अनेकार्थ होतें हैं।
[(1.1) The meaning of any Jyotish term
you understand on the basis of your intellect just concentrate on that for
example if any expert while explaining predictive side of Jyotish gives the
meaning of Bhansh as Navansh then you should also consider that Vedic muni
Parashara made Bhansh Chakra after considering Bhansh as 27th part
of a Zodiacal Sign so if you are conducting your researches by considering
Bhansh described in Jyotish term as Bhansh described by Vedic muni Parashara
then you are following the right path. In this way you can use Sanskrit words
in many ways because there may be many meanings for one Sanskrit word.]
(१.२) जिन विद्यार्थीयों का अनुभव ज्योतिष
क्षेत्र में १० वर्ष से कम है वो ज्योतिष सम्बंधित अलंकृत लेखो को लिखने के स्थान
पर शोध, समझ
एवं भविष्यफलकथन में सटीकता कैसे प्राप्त की जाए इस पर विचार एवं प्रयत्न अधिक
करें।
[(1.2) The students having an
experience of less than 10 years in the field of Vedic Jyotish should avoid
writing decorative Articles concerning Jyotish instead they should try their
best to think and practice more about how to conduct researches, how to
understand and how to get accuracy in predictive side.]
(१.३) शब्द व्योम में निहित है और शब्द में
ज्ञान निहित है तो व्योम में समाहित ज्ञानप्रप्ति हेतु व्योमोपासना अनिवार्य है।
क्षमा कीजिए यह व्योमोपासना कैसे की जाती है यह मैं उन्ही विद्यार्थीयों को बतला
सकत हूँ जो व्यक्तिगत रूप से मेरे संपर्क में है पर मैंने एक महत्वपूर्ण संकेत
यहाँ दिया है।
[(1.3) Shabda (Word) exists in Vyoma
(Sky) and Gyana (Knowledge) exists in Shabda (Word) so to get knowledge stored
in Vyoma (Sky) the Vyomopasana (Worship of Sky) is essential. Just excuse me
please how to do Vyomopasana I can only tell to those students who are in my
contact personally but here I gave an important clue.]
(१.४) ज्योतिष के विद्यार्थी यदि इस मंत्र का जप
कुछ समय के लिए नित्य करें तो वे अपने अंदर समाहित "प्रज्ञा" बुद्धि को
विस्तृत कर सकतें हैं और यह मंत्र इस प्रकार है:
ॐ होरापाथोनिधेः पारं
दुष्पारं तर्त्तुमिच्छतः ।
महागणपतेः शुण्डोऽवलम्बाय
प्रजायताम ॥
[(1.4) The following Mantra if
recited by students of Jyotish for some times daily then they will expand the
special intellect “Pargya” living inside them and that Mantra is as:
Om Horapathonidheh Paaram Dushpaaram Tartunichchteh!
Mahaganpateh Shundiavmlambaay Prajaayetaam!!
लेखक, चिंतक एवं विचारक
विशाल अक्ष
Writer, Thinker & Philosopher
Vishal Aksh
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(The
aforesaid article written by me on Saturday, April 23, 2016 at 21:50 (IST) was
first published on my Facebook Page in Hindi on Saturday, April 23, 2016 at
21:56 (IST). Follow link: https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=888793477909227&id=856959071092668
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