"चरात्मादिकारक व्यवस्था” - विशाल अक्ष द्वारा प्रस्तुत एक शोध
“The Order Of Charatmaadikaarka” – a
research by Vishal Aksh
(१) विष्णु पुराण अध्याय - ४, श्लोक
- १ में ऋषि पराशर भगवान वेद व्यास को अपना पुत्र एवं ऋषि जैमनी को अपने पुत्र वेद
व्यास का शिष्य बतातें हैं
जो कि सामवेद के ज्ञाता है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि ऋषि जैमनी
पराशर ऋषि के पश्चात अस्तित्व में आये।
(1) In Chapter:
(IV), Shloka: 1 of Vishnupurana the Vedic Rishi Parashara tells Lord Ved Vyasa
as his son and Rishi Jamini the exponent of Samaveda as the disciple of his son
Ved Vyasa. This makes it clear that Rishi Jamini came into existence after
Rishi Parashara.
(२) ज्योतिष के सर्वमान्य ग्रन्थ
बृहत्पराशरहोराशास्त्र जो कि भगवान पराशर एवं उनके शिष्य मैत्रेय के मध्य सम्वाद
के रूप में है उसमे भगवान पराशर ने ज्योतिष के जिन अठ्ठारह महान प्रवृतको का
उल्लेख किया है उनमें उनका पुत्र वेद व्यास तो है पर जैमिनी ऋषि का कही भी वर्णन
नही मिलता। पर प्रयोगिक दृष्टि से जैमिनी के ज्योतिष सूत्र प्रभावी हैं। उन
सूत्रों को पराशर नें भी दिया है। इस से पूर्ण रूप से स्पष्ट होता है कि ऋषि
जैमिनी चरात्मादिकारक व्यवस्था के प्रणेयता नही है अतैव सम्भव है कि किसी
अप्रकाशित विद्वान ने ऋषि जैमिनी के नाम से चरात्मादिकारक व्यवस्था से
सम्बन्धित सूत्रों को सङ्कलित कर दिया हो।
(2) Lord Parashara
did not mention Rishi Jaimini among one of the Eighteen Great Reformers of
Jyotish except his son Veda Vyasa in Brihitparasharahorashastram which is in
the form of a discussion between him and his disciple Metrey. But as the applicability
is concerned the Jamini Sutra of Jyotish are found effective. Those Sutra are
also mentioned by Parashara. This proves that Rishi Jaimini is not the inventor
of the Order Of Charatmaadikaarka so it is possible that some anonymous
expert compiled the Order Of Charatmaadikaarka by giving credit to Rishi
Jaimini.
(३) किसी - किसी बृहत्पराशरहोराशास्त्र की
प्रतिलिपि में अग्रलिखित श्लोक चरात्मादिकारक व्यवस्था के सन्दर्भ में मिलता है जो
कि मेरे दृष्टि में सत्य है एवं इसकी चर्चा सविस्तार किसी अन्य लेख में करुंगा:
(3) In several
versions of the Brihitparasharahorashastra the following Sanskrit Shloka is
found in the context of the Order Of Charatmaadikaarka and in my opinion it is
true and I shall discuss in details in a different Article:
अथाऽहं
सम्प्रवक्ष्यामि ग्रहानात्मादिकारकान्।
सप्तरव्यादिशन्यन्तान्, राह्वन्तरान्, वाष्टसंख्यकान्॥
[Athaham
Samprevekshyaami Grahaanatmaadikaarkaan!
Saptravyaadishnayantaan
Rahvntraan vaashtsankhykaan!!]
विशाल अक्ष द्वारा उपरोक्त संस्कृत श्लोक का
हिन्दी अनुवाद: वैदिक मुनि पराशर अपने शिष्य मैत्रेय को
चरात्मादिकारक व्यवस्था के सन्दर्भ में शिक्षा देते हुए कहतें हैं कि सूर्य
प्रारम्भ कर शनि तक सात आत्मादिकारको की गणना का उवाच
करने जा रहें है तथाऽपि कुछ विद्वान सूर्य से प्रारम्भ कर राहु तक आठ चरकारको को
मान्यता प्रदान करतें हैं।
Translation
Into English Of Aforesaid Sanskrit Shloka By Vishal Aksh: Vedic Muni Parashar tells his disciple
Metrya while teaching in the context the Order Of Charatmaadikaarka that starting
from Sun to Saturn he was going to tell about the calculation of Seven
Aatmadikarka even though there were several exponents who took into
consideration Eight Charakarka in calculating them from planets starting from
Sun to Rahu.
(४)
यह पूर्णरूपेण स्पष्ट होता है कि भगवान पराशर भी चरात्मादिकारक व्यवस्था के
सृजनकर्त्ता नही हैं वे तो इस व्यवस्था के संशोधक हैं। यह व्यवस्था उनसे पूर्व भी विद्यमान
थी।
(4) This proves completely
that lord Parashara was not the inventor of this Order Of Charatmaadikaarka as
he was the reformer of this Order. This Order also prevailed before him.
टिप्पणी: पराशर के
पूर्व भी कुछ विद्वान सूर्य से राहु तक आठ चरकारको की गणना को स्वीकार करतें थे जिस में
संशोधन कर भगवान पराशर ने मात्र सूर्य से शनि तक सात चरकारको को ज्ञात करने का निर्देश दिया है एवं अंश, कला एवं विकला का दो ग्रहों में साम्य
होने पर ही राहु की गणना करने का विकल्प दिया है।
Note: It is before Parashara that several
exponents recognized Eight Charakarka while calculating them from Sun to Rahu
and Parashara reformed that while directing to calculate Seven Charakarka from
Sun to Saturn and if the Degree:Minute:Seconds of any two Planets found same in
that case the option would be to consider Rahu.
(५)
वैदिक ज्योतिष क्षेत्र में मेरा लगभग तीस वर्षो का सतत अनुभव एवं अनुसन्धान के
आधार पर मैं यह प्रतिपादित कर सकता हूँ कि चरात्मादिकारक व्यवस्था का प्रयोग किए
बिना किसी भी षोडष वर्ग के वर्ग का एवं वर्ग चक्र का राशिचक्र से समनवय कर फलित
करना नितान्त असम्भव है।
(5) On the basis of my prolonged experience and
researches I can form the opinion that it will be absolutely impossible to
predict on the basis of any Varga of Shodashvarga and relating Varga Chakra and
Rashi Chakra without the application of the Order Of Charatmaadikaarka.
Written on Wednesday, October 23, 2019 at 16:15 (IST) by:
Vishal Aksh
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